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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday 17 July 2012

पद्य - ८८ - सुन्नरि प्रिया तेँ सुप्रिया


सुन्नरि प्रिया


सुन्नरि   प्रिया   तेँ   सुप्रिया, मम् उर बसल  तेँ  उर्वशी ।
कहबे  करत   सभ  शशिप्रिया, हम शशि हमर अहँ प्रेयषी ।।




सुन्नरि   प्रिया   तेँ   सुप्रिया,
मम् उर बसल  तेँ  उर्वशी ।
कहबे  करत   सभ  शशिप्रिया,
हम शशि हमर अहँ प्रेयषी ।।



चलैत  मरु  जिनगीक  निर्मम्‌,
कत’  मरीचि  छकबैत  छल ।
निरस एकसरि  बाट  जिनगीक,
मोन   केँ   थकबैत    छल ।
थाकल - प्यासल   ई   बटोही,
घाम  सञो  अपस्याँत  छल ।
पानि  मिसियो,  छाँह  कनिञो,
कतऽ  भेटत  अज्ञात   छल ।

एक दिन एहिना तँ  किछु सनि,
लिखि देलक भाग्यक मसी ।
जाऽ पढ़ल, देखल – लिखल छल,
संग  आगाँ   एक  सखी ।।



नीक  कि  अधलाह  ?  पहिने,
पढ़ि कऽ से नञि  बुझि पड़ल ।
मन   सशंकित   छल   अनेरो,
जानि ने  विधि  की  लिखल ।
की  हमर   मनोभाव  केँ  ओ,
अपरिचित सखि  बुझि सकत ?
वा  अपन  छवि – दर्प – उबडुब,
अपन    बाटेँ   ओ    चलत ।

छलहुँ  गुनधुन  मे  देखल  ता,
संग    बैसलि    रूपसी ।
एकटक      देखैत     हमरा,
ठोर  पर  मुस्की – हँसी ।।



की दिवस – सपना  देखल  हम,
पर  बूझल,  नञि  साँच  छी ।
नञि जरए,  शीतल  लगए  जे,
ई   तँ   तेहने   आँच   छी ।
प्यासल  पथिक केँ  पानि भेटल,
छाँह   घनगर    प्रेम    केर ।
लऽग   हीरक   स्वच्छ   आभा,
के  ताकए,  मृग   हेम   केर ।

कविक  मन   भावक  पियासल,
अहीं  छी   मोर  उर्वशी ।
अहीं   उर - अन्तर   समाहित,
काव्य – पटलक  शोड़षी ।।







क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

सुन्नरि
सुन्नैर
उर्वशि
उर्वैश, उर्वशि
उर्वशी
उर्वशी
एकसरि
एकसरि, एकसैर, असगर
शशि
शशि, शशि
प्रेयषी
प्रेयषी
प्रेयषि
प्रेयैष
पानि
पानि, पाइन, पैन (पानी = गलत उच्चरण)
सनि
सैन, सन
बुझि
बुइझ, बुझि
जानि
जाइन, जैन, जानि (जानी = गलत उच्चारण)
१०
छवि
छैव, छवि
११
बैसलि
बैसैल बैसलि (स्त्रीलिङ्ग)
बैसल
बैसल (पुलिङ्ग)
१२
कवि
कैव, कवि (सामान्य प्रयोग)
कवी
कवी (शब्दविशेष पर जोर देबाक लेल वा पद्य मे मात्रा मेलक हेतु प्रयुज्य)



डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण,  पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५५,  अंक ‍११० , ‍१५ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२” मे प्रकाशनार्थ ।

पद्य - ८६ - अहीं सञो कहै छी


अहीं सञो कहै छी





अहीं सञो कहै छी ।
अहाँ नञि सुनै छी ।
पता  नञि  किए,  आइ  निष्ठुर  बनल छी ।।

अहँ  इजोरिये रही ।
हम अन्हरिये सही ।
हे अए (ऐ) चन्ना, कहाँ हऽम चानी मँगै छी ।।

प्रीति नहिञे सही ।
अनाशक्ते    रही ।
मुदा  घृणित  मनेँ,  किए  नैना  फेरै छी ??

छी हमहूँ मनुक्खे ।
मुदा  दोष  एतबे ।
हृदय मे  अहँक,  प्रेम  प्रतिमा  पूजै  छी ।।

डऽर चोरिक किए ?
बरजोरीक   किए ?
एहेन छी ने पतित,  अहाँ  व्यर्थेँ  डरै छी ।।



डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५५,  अंक ‍११० , ‍१५ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२” मे प्रकाशित ।

Friday 6 July 2012

पद्य - ८५ - बर्खा रानी - ‍२ (बाल कविता)


बर्खा रानी - ‍२


दुष्कर     सौंसे     आबाजाही,
कतेक  लोक   करतै   बैसार ?
जतहि सञो अएलेँ ततहि पड़ा जो,  आब ने अप्पन मूँह देखा ।
  बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।



बर्खा  रानी !  आब ने आऽ ।
दम्म  धरै  तोँ  ले सुस्ता ।
हाथ – पएर सभ ठिठुरि गेल अछि, आब तोँ रौदक दरस देखा ।
     बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।


खेल – कूद सभ बन्न पड़ल अछि,
संगी – साथी    पड़ल   बेमार ।
सर्दी–खाँसी,   ढों–ढों,  खिच–खिच,
ककरो  धएने   अछि  बोखार ।
सभठाँ  एहने सनि  किछु  चर्चा,
एहने सनि किछु  दुखद समाद ।
पसरल  कए ठाँ  रोग  मलेरिया,
हैजा      डेंगू      कालाजार ।
आङ्गन  सगरो  चाली  सह – सह,  आब ने एहेन रूप देखा ।
    बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।


बाट – घाट   कादो – किचकाँही,
डूबल    सौंसे   खेत - पथार ।
माल–जाल सभ ठिठुरि मरै अछि,
मच्छर – माछीक  बढ़ल पसार ।
लेन कटल अछि, फेज उड़ल अछि,
देखब  टी॰ भी॰  तोहर  कपार ।
दुष्कर     सौंसे     आबाजाही,
कतेक  लोक   करतै   बैसार ?
जतहि सञो अएलेँ ततहि पड़ा जो,  आब ने अप्पन मूँह देखा ।
     बर्खा रानी ! आब ने आऽ ।।






उच्चारण संकेत :-



क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

पएर
पएर, पैर
ठिठुरि
ठिठुइर
अछि
अछि, अइछ, ऐछ
धएने
धएने, धेने
सनि
सैन, सन
जतहि
जतैह, जतहि, जतइ
ततहि
ततैह, ततहि, ततइ




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                              

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका,   वर्ष , मास ५५,  अंक ‍१०९,  ‍दिनांक - १५ जुलाई २०१२ , स्तम्भ – बालानां कृते, मे प्रकाशित ।

पद्य - ८४ - बर्खा रानी - ‍१ (बाल कविता)


बर्खा रानी - ‍१



बर्खा    रानी !  आऽ  गे  आऽ ।
राति   अएबेँ,  से  एखने  आऽ ।
इस्कूल  जा - जा  रोजे  थकलहुँ,
आइ  अपन   तोँ   खेल  देखा ।।

(बर्खाक पानि मे भीजि कऽ इस्कूलक आधा रस्ता सँ घऽर आपिस जाइत धिया लोकनि) 



बर्खा    रानी !  आऽ  गे  आऽ ।
राति   अएबेँ,  से  एखने  आऽ ।
इस्कूल  जा - जा  रोजे  थकलहुँ,
आइ  अपन  तोँ   खेल  देखा ।।

एखने  आ,  गए   एखने  आऽ ।
आइ  अपन  नञि  भाओ  बढ़ा ।
एतेक बरस तोँ झमकि झमकि कऽ,
रस्तेँ – पएरेँ   हो   नञि  थाह ।।

बर्खा   रानी !  एहि  ठाँ  आऽ ।
अप्पन  रिमझिम  गीत   सुना ।
दुपहरिया  धरि   खूब   बरसिहेँ,
फेर   कने    लीहेँ    सुस्ता ।।

बर्खा  रानी !  आब  ने  आऽ ।
दम्म   धरै,  तोँ  ले   सुस्ता ।
संगी – साथी     शोर    करैए,
खेलब - कूदब – करब   मजा ।।




उच्चारण संकेत :-




क्रम संख्या


लिखित शब्द


अभिप्रेत उच्चारण

अएबेँ
अएबेँ, ऐबेँ, एबेँ,
थकलहुँ
थकलहुँ, थकलौं
गए
गए, गै, गे
झमकि
झमकि, झमैक
धरि
धरि, धैर
बरसिहेँ
बरसिहेँ, बरैसहेँ
रस्तेँ – पएरेँ
रस्तेँ – पेरेँ



डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                              

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका,   वर्ष , मास ५५,  अंक ‍१०९,  ‍दिनांक - १५ जुलाई २०१२ , स्तम्भ – बालानां कृते, मे प्रकाशित ।