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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday 8 May 2012

पद्य - ६६ - मिथिलाक धिया (बाल कविता)


मिथिलाक धिया
(बाल कविता)









हऽम धिया मिथिला मैथिल केर,
मैथिली    हम्मर      नाम ।
हमही   जानकी,   हम  वैदेही,
सीता      हमरहि     नाम ।।


भारतवर्षक   पूब    दिशा   मे,
मिथिला     हम्मर     गाम ।#
संग  नेपालक  पूब  ओ  दक्षिण,
हमरहि     बास     सुठाम ।।#


कहियो हम  मिथिलाक माटि पर,
ज्ञानक  दीप  जरओने   छी ।
की मिथिला ?  सौंसे  भूतल केँ,
हम विज्ञान  सिखओने  छी ।।


हमही   कहियो   छलहुँ   गार्गी,
हमही    मैत्रेयी     बनलहुँ ।
मण्डन   शंकर   वाग्युद्ध   केर,
सूत्रधार   हमही    बनलहुँ ।।


ब्रम्हज्ञान  लौकिक - परलौकिक,
हम भामति, सञ्चित कयलहुँ ।
पर की भेल ? आइ  हमरा अहँ,
शिक्षा सञो  वञ्चित कयलहुँ ।।


एहनो   दिवस  रहल  जहिया,
नञि  चिट्ठी - पत्री हम जानी ।*
मिथिला  केर  बेटी  बनि  कऽ,
हम  खुशी मनाबी,  वा कानी !!


एखनहु बड़ - बड़  गप्प हँकै छी,
धिया – सिया  कहि  पड़तारी ।
पर  की  अतबहि  अछि  दुलार,
की अतबहि केर हम अधिकारी ??


तिलकक नाँव सँ हक्कन कनै छी,
छी    सत्ते     ई    महामारी ।
पर बाबू   !   की  कहियो   सोचल,
अपनेक     की   जिम्मेदारी ??


की   अपनेक   ई  सोच   उचित,
जे बेटी  अनकहि घर  जयतीह ?**
पढ़ा - लिखा   कऽ   की  होयत,
जँ कमा – खटा अनकहि देतीह ??**


अनकर  दोष   कहू   हम   की,
जँ अपनहि लोकक  सोच  एहेन ।
गप्पक   छुच्छ   दुलारहि   की,
जँ  व्यवहारहि  मे  भोंक एहेन ??


सोचू  कक्का !  अपनहु  घर  मे,
कहियो तँ अनकहि धी अओतीह ।
अनकहु  सोच  अहीं  सन  जञो,
तँ भौजी  पढ़ल कोना अओतीह ??


छी किछु लोक तँ आओरो बढ़ि कऽ,
तथाकथित    सज्जन    समाज ।
कोखि मे खेलैत  अपनहि धी केर,
वध   करैछ,  सरिपहुँ  ने  लाज ।।


हमरहु    इच्छा   दुनिञा   देखी,
आ दुनिञा केर संग  बढ़ी – चली ।
हमरहु    इच्छा     खेली – कूदी,
आ संगहि संग हम पढ़ी – लिखी ।।


मुट्ठी  भरि   मैथिल  ललना  केर,
नाँव   गना    जुनि    बहटारू ।
अपन  हृदय  सँ  अपनहि   पूछू,
मूँह  घुमा,  जुनि  गप्प   टारू ।।








# एहि ठाम भारत आ नेपाल स्थित मिथिलाक चर्चा मात्र सांस्कृतिक व भाषाई एकरूपता केर सन्दर्भ मे कएल गेल अछि । एकर प्रत्यक्ष वा परोक्ष कोनहु राजनैतिक अर्थ अभिप्रेत नञि अछि । 




* सन्दर्भ देखू श्री “अक्कू” जीक गीतक पाँती


सखी ! पिया केँ पत्र आइ हम,  कोना  कऽ लिखबै  हे ?
ककरा  सँ  अ – आ – क – ख – ग – ङ  सिखबै  हे ??
...............................................................
पाँचे बरष सँ फुलडाली लए, तोड़ब सिखलहुँ फूल अरहूल ।
जानी ने हम चिट्ठी - पत्री, छी बेटी  मिथिला  केर मूल ।।





** ई विचार हमर अप्पन नञि थिक, परञ्च अपनहि मैथिल समाजक देन थिक । केओ गोटे जखन अपन बेटी केँ इन्जिनियरिंग केर पढ़ाई केर लेल पठाए रहल छलाह तँ हुनिकहि किछु सम्माननीय सर – सम्बन्धीक ई कटाक्ष स्वर छलन्हि । सभसँ दुखक बात जे ई स्वर अपन समाजक मुर्ख – अशिक्षित लोकनिक नञि अपितु किछु अति विद्वान, प्रतिष्ठित लोकनिक छलन्हि ।






डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४




विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५२, अंक ‍१०४, दिनांक १५ अप्रिल २०१२, बालानां कृते स्तम्भ मे प्रकाशित ।



पद्य - ६५ - किए मैथिलीक आङ्गन उदास लगैए ?


किए मैथिलीक आङ्गन उदास लगैए ?
(गीत)



                 खन आबि केओ  कान मे ई बात पुछैए ।
              किए  मैथिलीक  आङ्गन  उदास लगैए ?



खन आबि केओ  कान मे ई बात पुछैए ।
किए  मैथिलीक  आङ्गन  उदास लगैए ?


किए   बैसल  छथि  मैथिल  आराम  सँ ?
किए  उठइछ  ने  धधरा  हरेक  गाम सँ ?
किए  दिनहु  मे  गुजगुज  अन्हार  लगैए ?
किए   मैथिलीक  आङ्गन  उदास  लगैए ?


कतए  गेलाह  शिवसिंह, विद्यापति, जनक ?
किए पड़ल अछि मन्द आइ माथक तिलक ?
किए  मिथिला  मे   उनटा  बसात  बहैए ?
किए  मैथिलीक  आङ्गन   उदास  लगैए ?


कहू !  कनइछ  के  बैसल  एहि  कोन मे ?
की ने बाँचल अछि  सिंह  एकहु  बोन  मे ?
किए  पीयर  सनि  खेतक  जजाति लगैए ?
किए   मैथिलीक  आङ्गन   उदास  लगैए ?





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।





पद्य - ६४ - हए बसन्ती पवन, कने धीरे तोँ चल


हए बसन्ती पवन, कने धीरे तोँ चल
(गीत)




हए  बसन्ती  पवन !  कने  धीरे  तोँ  चल ।
कने धीरे तोँ चल
ने   मचा    हलचल ।
हए  बसन्ती  पवन !  कने  धीरे  तोँ  चल ।।

देखू कनइत अछि नगर - नगर,
सिसकैत     अछि     गाम ।
बनल      पावन      विदेह,
अपनहि     केर     गुलाम ।
हे,  सुन,  सुन गे सरित !
ने तोँ कर  छल-छल
हए  बसन्ती  पवन !  कने  धीरे  तोँ  चल ।।

पुज्य   जनकक   ई   धरती,
मशान     बनल     अछि ।
लोक   रहितहुँ    जेना    ई,
विरान     बनल     अछि ।
सुन  गे  कोयली  कने !
ने  तोँ  गा  चञ्चल ।
हए  बसन्ती  पवन !  कने  धीरे  तोँ  चल ।।

जतए  गूँजय  छल  सदिखन,
विद्यापति     केर     गीत ।
आइ  नचइत  अछि   ताण्डव,
आ   गूँजैत   अछि   चीख ।
शस्य  श्यामल  ई  भूमि,
अछि बनल  मरूथल ।
हए  बसन्ती  पवन !  कने  धीरे  तोँ  चल ।।

उठू    मैथिल   युवक,
कहू   मैथिलीक  जय ।
होहु    आबहु    सतर्क,
करू   मैथिलीक  जय ।
फूँक  शंख   रे  मधुप !
चल  छोड़   शतदल ।
हए  बसन्ती  पवन !  कने  धीरे  तोँ  चल ।।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।





पद्य - ६३ - माँ जानकी वन्दना


माँ जानकी वन्दना
(किर्तन)



माँ वैदेही,   श्रीराम संगिनी,   जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।



जगत जननी,  कमल नयनी,  जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि, जनिक आसन कमल – नलिनी ।।

जनिक चरणरज पाबि धन्य भेल,
मिथिला  केर   पावन   धरती ।
मिथिलाक मान बढ़ाओल जग मे,
मिथिला  केर  बनि स्वयं बेटी ।
क्षिति तनया, श्री मिथिलाङ्गिनी, जनक कन्या, सुता धरणी ।
अवध रानी,  रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।

सुर नर मुनि गन्धर्व आ किन्नर,
जनिकर    महिमा    गाबथि ।
सृष्टि मे  कखनहु  ने  श्री  बिनु,
श्रीपति      पुर्ण    कहाबथि ।
माँ वैदेही,   श्रीराम संगिनी,   जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।

जन्म लेलन्हि  नारी बनि जग मे,
आदर्शहि      लेल      अर्पित ।
जिनगी बिताओल सघन विपिन मे,
रामहि      लेल      समर्पित ।
कुशक माता,  लवक जननी,  जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।







पद्य - ६२ - भजु धरणिसुता (किर्तन)


भजु धरणिसुता
(किर्तन)

श्रीराम सिया छथि कण – कण मे ।
ओ  बसथि  सभक  अन्तर्मन मे ।
बस  ध्यान   धरू,  सन्धान  करू,
करू हुनिकहि मे तन-मन अर्पण ।।





भजु धरणिसुता, तनुजा – मिथिला,
जय  रामलला  दशरथ  नन्दन ।
जय  गौरि – महेश, गणेश, विभो,
जय  पवनपुत्र  मारूति - नन्दन । *
भजु धरणिसुता ...........................।।

तजि लोभ मोह, धरु राम चरण।
तजि भव माया, गहू राम चरण ।
धरु ध्यान सदा मिथिलेश - सुता,
करू  राम – रमा  सादर वन्दन ।
भजु धरणिसुता ...........................।।


सभ कष्ट - क्लेश - सन्ताप हरथि ।
निज  भक्तक   बेड़ा  पार  करथि ।
करथि  गरल–सुधा,  कन्दुक-वसुधा,
हिय वन मे करु हुनि अभिनन्दन ।
भजु धरणिसुता ...........................।।


श्रीराम सिया छथि कण – कण मे ।
ओ  बसथि  सभक  अन्तर्मन मे ।
बस  ध्यान   धरू,  सन्धान  करू,
करू हुनिकहि मे तन-मन अर्पण ।
भजु धरणिसुता ...........................।।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।





पद्य - ६‍१ - शान्तिक सपूत संग्राम करय


शान्तिक सपूत संग्राम करय
(गीत)




काश्मीर  बनय, आसाम  बनय ।
शान्तिक  सपूत  संग्राम  करय ।*
नञि दोष हुनिक एहि मे कनिञो,
जँ मिथिला - भू पञ्जाब बनय ।।


हम मैथिल छी - मिथिलाबासी ।
सम  अधिकारक छी अभिलाषी ।
जहिना  तामिल  ओ  गुजराती,
तहिना   हमहूँ   मिथिलाभाषी ।
हमरहु  इच्छा,  हमरहु  मिथिला,
कर्णाटक  ओ  बङ्गाल  बनय ।।


हम माङ्गय छी नञि किछु विशेष,
निज  माङ्गय छी अधिकार बेस ।
हमरो प्रगतिक अछि  हक ओहिना,
जहिना   करइछ  आनहु  प्रदेश ।
जञो नञि, तँ दोष हुनिक ने कहब,
यदि क्रान्तिक कतहु मशाल जरय ।।


नञि भीख, अपन अधिकार मङ्गै छी,
कोशी – कमला  धार   मङ्गै  छी ।
जल–थल–नभ मे सञ्चार  मङ्गै  छी,
शिक्षा – रोजी – व्योपार  मङ्गै छी ।
नञि  कहब  फेर,  जञो आइ एखन,
हर  मैथिल, हर – विकराल बनय ।।

हर   प्रदेश,  भारत  केर  हिस्सा,
सभहक   दर्जा   एक   समान ।
तखन  किए  केओ  अमृत लूटय,
ककरो   भेटय  विष – अपमान ।
नञि फेर कहब - हुनिका सँ केओ,
जञो कोसी कमला लाल बहय ।।






* स्वभाव सँ मिथिलाक सपूत / मैथिल / मिथिलाबासी / मिथलाभाषी शान्तिप्रिय ओ सहनशील होइत अछि । ओ ककरहु सँ अनावश्यक युद्ध नञि चाहैत अछि । इतिहास साक्षी अछि कि मिथिलाक कोनहु राजा वा कोनहु व्यक्ति सिर्फ अपन राज्यक सीमाविस्तार वा अपन महत्त्वाकांक्षाक पुर्त्तिक लेल कहियो ककरहु पर अनावशयक युद्ध नञि थोपलक । ओकरा लऽग मे जतबहि भू – भाग वा सम्पदा छलै ततबहि मे सन्तुष्ट रहल । 

परन्तु आइ लोक ओकर शान्तिप्रिय ओ सहनशील स्वभाव केँ गलत स्वरूप मे ग्रहण करैछ । ओकरा आधुनिक राजनैतिक तन्त्र व आन विभिन्न सञ्चार माध्यम सँ बेर बेर उदाहरण देल जाइछ कि “क्या आप तेलंगाना की तरह विरोध प्रदर्शन कर सकते हो ?” ................... ओकर शान्तिपुर्ण माँग सभ केर प्रति धेआन नञि देब आओर संगहि पुर्ण दमनात्मक कार्यवाही करब सर्वथा अनुचित थिक । ओकरा जबरदस्ती अपन शान्तिपुरण रास्ता केँ छोड़बाक लेल उकसाएब थिक ।


स्वभाव सँ मिथिलाक सपूत
/ मैथिल / मिथिलाबासी / मिथलाभाषी एखनहु शान्तिप्रिय ओ सहनशील छथि । तेँ एहि गीतक माध्यमेँ भारत सरकार ओ तथाकथित समाचार व सञ्चार माध्यम सँ निवेदन जे अपन अनुचित ओ दमनात्मक क्रियाकलाप केँ विराम देथु; गलत जानकारी प्रसारित कए वा जानकारी सभ केँ गलत स्वरूप मे प्रचारित – प्रसारित कए मिथिला, मैथिल व मैथिली केँ तोड़बा – फोरबाक प्रक्रिया सँ बाज आबथु ।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।





पद्य - ६० - कहिया तक शान्ति हो ?


कहिया तक शान्ति हो ?
(आवाहन गीत)





शान्ति, शान्ति, शान्ति, शान्ति,
कहिया तक शान्ति हो ?
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


मैथिलीक  उत्थान  हो,
मैथिलीक सम्मान हो ।
भारत केर  नक्शा पर,
मिथिला केर नाम हो ।
शान्ति नञि, शान्ति नञि, क्रान्तिक आह्वान हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


घर  -  बाहर   सर्वत्र,
मैथिलीक   गान  हो ।
मैथिलीक   मान   हो,
मैथिलीक  शान   हो ।
एहि  पुनीत  यज्ञ  मे,  स्वार्थक  बलिदान हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


छलहुँ   परतन्त्र,   तखन
बातहि किछु आओर छल ।
आब  छी  स्वतन्त्र,  मुदा
तइयो  ने  बात   बनल ।*
आबहु  किए  भ्रमित  छी,  दिशा केर ज्ञान हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


शस्त्र  सँ  ने  क्रान्ति  हो,
शास्त्र   सँ   क्रान्ति  हो ।
क्रांति, क्रांति, क्रांति, क्रांति,
चेतनाक   क्रान्ति    हो ।
एकताक  तीर  सञो,  लक्ष्यक   सन्धान  हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।






* महान भाषाविद् सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सनक अनुसार बिहार केर अन्तर्गत मैथिली एकमात्र एहेन भाषा छल जे वास्तव मे भाषा होयबाक सभ शर्त पूरा करैत छल मैथिली केँ बिहारक राजकाजक भाषा केर रूप मे स्वीकार करबा हेतु तत्कालीन ब्रिटिश सरकार सँ अनुरोध / अनुमोदन कएने छलाह । 

परञ्च ओहि समय भारतक स्वाधीनता संग्राम अपन चरम पर छल आ कहल गेल कि ग्रियर्शन महोदयक उपरोक्त प्रस्ताव फुटकएबाक नीति सँ प्रेरित थिक तेँ नञि मानल जएबाक चाही । मैथिल लोकनि देशहित मे (भारतक हित मे) सहर्ष बिना कोनहु विरोध केँ मैथिली लेल जिद्द छोड़ि हिन्दीक प्रचार प्रसार करबाक बात केँ स्वीकार कएलन्हि । एहि क्रम मे अंग्रेज लोकनि सँ मित्रता होयबाक बादहु तत्कालीन दड़िभंगा महाराज स्व॰ लक्ष्मीश्वर सिंह देवनागरी (हिन्दी) केर प्रचार बढ़एबाक हेतु निर्देश निर्गत कएलन्हि । एकर मतलब ई कथमपि नञि कि मैथिल लोकनि अप्पन मातृभाषा मैथिलीकेँ बिसरि गेलाह । मोन मे रहन्हि जे भारतक स्वाधीनताक बाद मैथिली आ मिथिला केँ स्वतः अपन स्थान भेटि जायत ।


अस्तु ‍१५ अगस्त ‍१९४७ ई॰ कऽ देश स्वाधीन भेल । पर मैथिली केर संग आशाक एकदम्मे विपरीय पुर्ण भेद भाव कएल गेल । भाषाक आधार पर मिथिला राज्य के कहए अपितु मैथिली केर अस्तित्वहि पर प्रश्न चिन्ह लगाओल गेल, हिन्दीक बोलीक रूप मे घोषित करबाक भरिसक दुष्प्रयास कएल गेल । नहिञे साहित्य अकादमी आ नहिञे आठम अनुसुची मे स्थान देल गेल (जे कि बाद मे कतेकहु संघर्षक बाद भेटल) । एतबहि नञि मैथिली केँ तोड़बाक हेतु आ मैथिल केँ परस्पर लड़एबाक हेतु नऽव नऽव परिभाषा सभ गढ़ल गेल । मैथिली केँ भाषाक अधिकार देमए काल अस्सी मोन पानि पड़ैत छलन्हि परञ्च तिरहुतिया, बज्जिका, अंगिका आदि मैथिलीक बोली सभ केँ स्वतन्त्र भाषाक रूप मे परिभाषित कएल गेल मैथिल लोकनिक देशहित मे कएल गेल काज वा देशभक्तिक ई केहेन पारितोषिक छल, से नहि जानि ??????






डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।



पद्य - ५९ - जयति जयति मिथिले


जयति जयति मिथिले
(जन्मभूमि स्तुति गीत)



जय शत् – सरिते अमिय – वाहिनी ।
मिथिला – भू   जीवन – प्रदायिनी ।
अमिय चरणरज माए मैथिलीक, पाबि धन्य गंगे ।।

(नोट - ई दुहु मानचित्र भाव - प्रदर्शक आ प्रतीकात्मक थिक, मिथिलाक वास्तविक सीमादर्शक नञि ।)

(मिथिलाक इएह नदी सभ जे कि बाढ़ि आनैत अछि, से वास्तव मे समुद्र सँ दूर मिथिलाक लेल जीवनप्रदायिनी सेहो अछि ।)



जय शत् – सरिते अमिय – वाहिनी ।
मिथिला – भू   जीवन – प्रदायिनी ।
अमिय चरणरज माए मैथिलीक, पाबि धन्य गंगे ।।

(नोट - ई दुहु मानचित्र भाव - प्रदर्शक आ प्रतीकात्मक थिक, मिथिलाक वास्तविक सीमादर्शक नञि ।)

(मिथिलाक इएह नदी सभ जे कि बाढ़ि आनैत अछि, से वास्तव मे समुद्र सँ दूर मिथिलाक लेल जीवनप्रदायिनी सेहो अछि ।)






जय  हे !
जयति  मिथिला ।
जयति  मिथिले  
जय कवि - कोकिल - अमिय - वाङ्गमय,
जयति, जयति  मिथिले ।।


जय मिथिला – भू तरण – तारिणी ।
श्रीसीते   निज   गर्भ   धारिणी ।
नतमस्तक तोरा आगाँ माँ, जन्मभूमि मिथिले ।।


जय शत् – सरिते अमिय – वाहिनी ।
मिथिला – भू   जीवन – प्रदायिनी ।
अमिय चरणरज माए मैथिलीक, पाबि धन्य गंगे ।।


जय मिथिला धन जन वन उपवन ।
जय मिथिला केर पुज्य हरेक कण ।
बारम्बार करी स्तुति हम, जयति जयति मिथिले ।।




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।