Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Tuesday 10 March 2015

पद्य - ‍१०६ - मैट्रिकक तैय्यारी (कविता)

मैट्रिकक तैय्यारी


साटा पर  कत’ मैच  खेललियै 

कतहु खेललियै, कतहु देखलियै


पएर  तर  बगरा, बाप रौ बाप !*‍१
आब की करियै, आहि रौ बाप ! !

नओमाकेँ हम किछु ने बुझलियै ।
भरि नओमा हम खेलि गमेलियै ।
कहुना नओमा पास भऽ गेलियै ।
छओ महिना फेर खुशी मनेलियै ।
मैट्रिकमे   दसमेक  पुछै  छै,  नओमामे  तेँ  बेपरवाह ।*
पएर  तर  बगरा, बाप रौ बाप ! !

दूर्गापूजा   खूब   घुमलियै ।
नाटक, थेटर, नाच देखलियै ।
दियाबाती  छठि*३ मनेलियै ।
फॉर्म बोर्ड केर, सेहो भरलियै ।
दसमा केर सिलेबस एतबे, चारि मासमे दस – दस चास ।
पएर  तर  बगरा, बाप रौ बाप ! !

ठण्ढी   आ  शीतलहरी   एलै ।
साटा पर  कत’ मैच  खेललियै ।
कतहु खेललियै, कतहु देखलियै ।
जीत – हारि दुनु खूब मनेलियै ।
पढ़बा कालमे ठण्ढी लागय, ट्वेण्टी – ट्वेण्टी केर उछाह ।
पएर  तर  बगरा, बाप रौ बाप ! !

नऽव  बरख,  बनभोजो  केलियै ।
मंगलमयक   सनेश    पठेलियै ।
लाई, चुड़लाई आ तिलबा खेलियै ।
खिच्चरि – दऽही   संगे  देलियै ।
प्रात भने  बुझना  गेलै, छै मास एक मैट्रिक केर – आह !
पएर  तर  बगरा, बाप रौ बाप ! !

“एटम बम” कण्ठस्थ रटलियै ।*
“गेस पेपर” केँ  खूब चटलियै ।*
महाबीरजीकेँ      गोहरेलियै ।*
जोड़ा - छागर कबुला केलियै ।*
हाथ परीक्षाफल आयल तँऽ,  जेना  सूँघि नेने हो  साँप !
पएर  तर  बगरा, बाप रौ बाप ! !


*१ - पएर तर बगरा, बाप रौ बाप – ई एकटा बुझौअलि अछि जकर मतलब होइत अछि “आगि” ।
*२ – आइ काल्हि बहुत रास धियापुता मोनमे ई विचार बहुत दृढ़तासँ पोषने रहैत छथि कि मैट्रिक केर पाठ्यक्रममे मात्र दशमे वर्गक पाठ्यक्रमसँ पूछल जाइत अछि । ई विचार अत्यन्त भ्रामक अछि । उदाहरणार्थ जँ नओमाक रसायनशास्त्रमे परमाणु संरचना, संयोजकता आदि नञि पढ़ने छथि तँऽ हुनिकालोकनिकेँ दशमाक रासायनिक बन्धन, रासायनिक समीकरण संतुलन आदि कोना कऽ बुझबामे अओतन्हि ।
*३ - उच्चारण भेल “छइठ” ।
*४ – “एटम बम” – एक प्रकारक अति सम्भावित प्रश्न सभक पुस्तिका थिक, जकर नाँव सँ मिथिलाक बच्चा – बच्चा (आ तेँ पैघलोकनि सेहो)  चिर – परिचित छथि । ई कोनो “बम” वा “बम बनएबाक पुस्तिका” नञि अछि ।
*५ – “गेस पेपर” – एहि नाम सँ तँऽ पूरा देशे सुपरिचित अछि ।
*६ आ *७  – महाबीरजी वा अप्पन – अप्पन आन आराध्य देवी – देवता सभक परिचायक ।



'विदेह' १७२म अंक  १५ फरबरी २०१५ (वर्ष मास ८६ अंक १७२) मे प्रकाशित । बलानां कृतेमे ।

Saturday 7 March 2015

पद्य - ‍१०५ - भेटत मजूर कतऽ - मिथिलाकेर बच्चा (कविता)

भेटत मजूर कतऽ - मिथिलाकेर बच्चा





चुनावक बोखार छै,
सभ केओ बेहाल छै,
तकनहु  भेटैछ   केओनेता  ने  सुच्चा ।।

मिथिलाक आँच पर,
रोटी अछि सेकि रहल,
मिथिलेकेँ  बेचि  रहल,  लबड़ा  आ लुच्चा ।।

भाषणमे मिथिला छै,
भाषणमे मैथिली,
घऽर  ओकर – मैथिली  बूझय  ने  बच्चा ।।

मिथिलाक जनगण छै,
दिल्ली आ पटना लए,
भोटक  जोगार  बस,  जीत   बुझू  पक्का ।।

योजनाक बात भेल,
देशक बिकाश लेल,
भेटत  मजूर  कतऽ - मिथिला केर  बच्चा ।।

देशक अजादी केर,
सत्तरि अछि लागि रहल,
पर ने  उद्योग  एतए,  नहिञे  छी  धन्धा ।।

सरकारक नीति ई,
नञि जानि केहेन छी,
भोगि रहल कुहरि रहल,  मिथिलाक बच्चा ।।

प्रदेशक जबार भल,
मिथिलाक पात पर,
मड़ुआक  रोटी  अछि,  माँगू  ने  कुच्चा ।।

आन भाग देशक,
जोगार करए पेटक,
पोल्हाबए   कुटुमे  छऽ,  देशे  समुच्चा ।।

हर भाग देशक,
जँ बनतै उत्पादक,
तँऽ  तोँही   कहह,  के  हेतै  उपभोक्ता ।।




'विदेह' १७० अंक ‍१५ जनबरी २०१५ (वर्ष मास ८५ अंक १७०) मे प्रकाशित । बालानां कृतेमे ।

पद्य - ‍१०४ - चन्दाक धन्धा (कविता)

चन्दाक धन्धा



धियापुता सभ दूइर भऽ रहल,  अपने ठोकि रहल छी  पीठ ।
पढ़बा - लिखबा केर उमेरमे, चन्दा माँगि रहल अछि  ढीठ ।।

सरस्वतीपूजा केर अवसरि,  हाथमे  कलम  आ पोथी नीक ।
पढ़बा - लिखबा छाड़ि कऽ देखू,  चन्दा माँगि रहल निर्भीक ।।

नान्हि – नान्हि टा छौंड़ा – छौंड़ी,  बाँस आ बत्ती हाथ नेने ।
सड़क जाम कऽ चन्दा माँगए,  अपन भविष्यकेँ कात केने ।।

ई  घटना  दृष्टान्त  मात्र  छी,  बैसल छी हम माथ धेने ।
पूजा  हो  वा  ईद – मोहर्रम,  चन्दा केर  सभ साथ धेने ।।

पूजा – पाठ आ धर्म – संस्कृति, हमरा नञि तकरासँ विरोध ।
उचित हरेक संस्कार – संस्कृति, जाधरि ने करइछ गतिरोध ।।

उत्सव – पाबनि – परब – तिहार, जिनगी केर छी रंग हजार ।
बिनु   एकरा  एकरस  जिनगी,  से  हमहूँ  मानै  छी  सरकार !!

पर स्वरूप ई कतेक उचित छी, अपनहिसभ कने करू विचार ।
धियापुता  देशक  भविष्य  छी, कतेक उचित एहेन बेबहार ।।



'विदेह' १७१ अंक ०१ फरबरी २०१५ (वर्ष मास ८६ अंक १७१) मे प्रकाशित ।

Monday 2 March 2015

पद्य - ‍१०३ - फागुनक पानि (कविता)

फागुनक  पानि (कविता)





फागुनक  पानि, अकालक पानि ।
तइयो लाभ आ किछु छी हानि ।।

गहूम   पुष्ट,  मज्जर  मजगूत ।
मसुरीक छी   सद्यः   यमदूत ।।

धियापुता   लए  मजगर  बात ।
इस्कूल  बन्दी   छै   बरसात ।।

पुरिबा - पछबा   बहए  बसात ।
ठिठुराबै - कँपबै    छै   गात ।।

बीतल  ठण्ढी  पुनि  घुरि  गेल ।
सोएटर - कम्मल  बाहर  भेल ।।

मुरही - कचड़ी - झिल्ली - चौप ।
चाहक   चुस्की   चौके - चौक ।।

गरम   जिलेबी,   लिट्टी  बेस ।
गरम   सिंघारा    खेपे - खेप ।।

नहिञे    गरजय - तरजय   मेघ ।
टिप्-टिप्-टिप्-टिप् बरिसय मेघ ।।

बरसाती,    छत्ता     की     भेल ?
छोड़ू !  एक  दिनक   छी  खेल ।।



02 MARCH 2015  कऽ प्रकाशनार्थ विदेह - पाक्षिक मैथिली ई पत्रिका केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।