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Friday 31 July 2015

पद्य - ‍१‍१३ - श्री ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (कविता)

श्री ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम
(कविता)




जाति - धर्म नञि, कर्म महान ।
गीतामे   कहलन्हि   भगवान ।
ताहि  आदर्शक  एक  उदाहरण,
श्री ए॰ पी॰ जे  अब्दुल कलाम ।।

जिनगी जनिकर  छल विज्ञान ।
देश जनिक  करइछ  सम्मान ।
कोना कऽ भारत  बिसरि सकत,
रक्षाक क्षेत्र  हुनिकर  अवदान ।।

जा जिउलन्हि पूजल बस ज्ञान ।
क्षण भरि ने कएलन्हि विश्राम ।
राष्ट्रपतिक पद पाबि कऽ जनिका,
धन्य  भेल,  पाओल सम्मान ।।

प्रतिभा - पद, नञि लेश गुमान ।
ज्ञानक  अर्जन,   ज्ञानहि  दान ।
कथनी - करनी अन्तर नञि छल,
हुनिकर छल  व्यक्तित्व  महान ।।

मुक्त  हाथ   बाँटल  ओ  ज्ञान ।
भेदभाव  बिनु  रहथि   सुजान ।
एहि  सुन्नर  व्यक्तित्वक  कारण,
विश्व हुनिक  करइछ  गुणगान ।।

माटिक   देह   माटिमे   लीन ।
मुदा हुनक  नञि  कृत्य मलीन ।
श्रीसँ युक्त  छलाह - रहताह ओ,
काया  भेल  पञ्चतत्त्व विलीन ।।

विश्वकेँ  दए   अन्तिम  सलाम ।
ओ  कएलन्हि  भूतलसँ प्रस्थान ।
ओहि  दिव्य-पुरुषकेँ  छी   करैत,
नञि एक बेर, शत्-शत्  प्रणाम ।।


07 AUG. 2015 कऽ प्रकाशनार्थ मिथिला दर्पण केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।
















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