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Sunday 1 May 2016

पद्य - ‍१७८ - बागर (बाल कविता)


बागर (बाल कविता)



कोना करै छेँ - “बागर”  सनि,
बागर की होइ छै - से  बता ।
बागर - बागर   लोक  बाजैए,
बागर की - ककरो  ने पता ।।

जे   कहबेँ  -  पएबेँ   ईनाम,
सोचै जाइ जो सभ धियापुता ।
हारि गेलेँ,  तखने  हम कहबौ,
नञि तँऽ छी  हमरो ने पता ।।

एहिना बहुते  शब्द  मैथिलीक,
हेरा  गेल  ककरो  ने  पता ।
जे  बाँचल,  पैघो  ने  बाजए,
सीखतै   कोना   धियापुता ।।

नेनपनमे सुनलहुँ, पूछल,  पर
अर्थ  ने  बूझल छल ककरो ।
उत्कण्ठा  तकबाक  हिलोरल,
तेँ किछु बूझल अछि हमरो ।।

“बागर”  परबा  केर  प्रजाति,
सन्दर्भ भेटल हमरा एक ठाँ ।*
उकपाती  आ  बड़  झगड़ौआ,
बड़ हल्ला रहितए जाहि ठाँ ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - CSIR (आब NISCAIR) NEW DELHI द्वारा प्रकाशित पोथी WEALTH OF INDIA : BIRDS केर अनुसार बागर परबाक एक प्रजाति छल । कल्याणी कोशक अनुसार बागरएक प्रकारक बकरी थिक । सम्भवतः दुहु अपना - अपना अनुसारेँ सही छथि आ बागर अनेकार्थी शब्द थिक ।

* - एहि ठाम हम परबाक एकटा प्रजातिक रूपमे बागरकेँ लेल अछि जे स्वभावसँ बहुत झगरौआ, उकपाती आ हल्ला मचबए बला होइत छल आ परबाक प्रतियोगिता (परबाबाजी वा परबाक भिरन्त) केर उद्देश्यसँ पोषल जाइत छल ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍199म अंक (‍15 अप्रील 2016) (वर्ष 9, मास 100, अंक ‍199) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



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