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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Wednesday 22 June 2016

पद्य - ‍१९३ सँ ‍१९८ - पाकल आम (छवि वा सन्दर्भ आधारित ६ गोट बाल कविता)

पाकल आम

(छवि वा सन्दर्भ आधारित ६ गोट बाल कविता)



              कहियो - कहियो सभ किछु ठीक रहितहुँ, पर्याप्त समय रहितहुँ, लाख प्रयासक बावजूदहु किछु नञि लिखाइत अछि । कहियो तकर ठीक विपरीत, मोन चहुचङ्ग रहितहँ, बिना कोनो खास प्रयत्नक, बहुत कम समयमे अनायसहि बहुत किछु लिखा जाइत अछि । सएह भेल ‍१० जून २०१६ ई॰क भोरमे । फेसबुक फोलल, श्री बिभूति आनन्दजीक (मैथिली वरिष्ठ लेखक) प्रोफाइल फोटोक रूपमे आमक झब्बाक छवि लागल छल । झब्बामे चारिटा आम छल आ ताहिमे एकटा पाकल (पीयर ढाबुस), एकटा अधपक्कू आ शेष दू टा काँच (किंवा डम्हाएल) छल । झब्बा नीक लागल - ताहि सन्दर्भ पर एक टा कविता लीखल । तकरा बाद पाँचटा आओरहु कविता धरा-धर अपनहि-आप लिखा गेल ।



०१

एक अधवयसू − दू टा जुआन ।
संगहि एक गोट पाकल आम
सुन्नर  समय −  विहंगम  दृश्य,
तीन पीढ़ी केर  भेल  मिलान ।।


जिनगीक गति  छी एहने भैय्या,
सब  अबटीमे  पाकल आम
समयक चालि ने बदलल कहियो,
तूबत बनि सब  पाकल आम ।।


समय  हाथ  -  जीबू  मस्तीमे,
जिनगी केर नञि कोनहु ठेकान ।
कनितहि रहब, हँसब कहिया फेर,
उलहन − देव  भेलाह  बेइमान ।।




०२


एक    परम    पाकल     प्रबुद्ध,
दोसर पकबा लए  प्रेरित अछि ।
तेसर - चारिम   से  देखि  रहल,
खेला देखि  अचम्भित  अछि ।।


पहिलुक अछि  सत्ता  हथिअओने,
आनक सत्ता  लए  काल बनल ।
दोसर   सोचए,   तूबए   पाकल,
तखनहि तँऽ  गुरूघण्टाल बनब ।।


तेसर - चारिम छी  मूक  प्रजा,
सब देखि रहल आ सोचि रहल ।
सत्ताक  समर  नञि  प्रतिभागी,
परिणाम मुदा सब भोगि रहल ।।



०३

एक  गुरू  छथि  दीप्त  ज्ञानसँ,
दोसर  किछु  अवभासित छथि ।
तेसर - चारिम नव शिष्य हुनक,
संगति बैसल आह्लादित छथि ।।


कहथि  गुरू - ई  ज्ञान  थिकहि,
बँटलासँ  कहियो  नञि  घटैछ ।
अज्ञानक    अम्मत    टिकुला,
ज्ञानहि बल मधुर रसाल बनैछ ।।


सद्-ज्ञान गुरूक छी झलकि रहल,
पीताभ मधुर आमक फल सनि ।
संगतिमे अम्मत काँच आम सेहो,
बदलि रहल पाकल फल सनि ।।

०४

एक   दूइर  दोसरहुँकेँ  करैछ,
से  संगति  केर  प्रभाव  छै ।
पाकल देखि  कऽ काँच  पकैए,
फऽड़क  सहज  स्वभाव  छै ।।


एक जँ  उजिआएल,  दोसरहुमे
उजिअएबा  केर  भाव भरैछ ।
जँ  केओ  बुड़िआएल  समूहमे,
सभक भविष्यक काल बनैछ ।।


एक शराबी इएह  चाहैत अछि,
मित्रहु  बैसि  शराब पिउबए ।
मुदा तपस्वी  सदिखन चाहैछ,
संगीक तप - जंजाल तजए ।।


संगति केर  महिमा छी भारी,
एहि झब्बामे से  बुझा रहल ।
पाकल  देखि   पकैए  दोसर,
तेसर-चारिम छी डम्हा रहल ।।


  
०५

देखि सुपुक - पाकल - गोपीकेँ,
मोन  करय  खएतहुँ ओकरा ।
बहुत ऊँच छी, चढ़ि नञि तोड़ब,
फेंकि  रहल  छी  तेँ झटहा ।।


गछपक्कू  तँऽ  गछपक्कू छी,
दोसर  पालहु  पर पका लेबै ।
संगमे कँचका सेहो खसल तँऽ,
गोड़ि  अनाजमे  पका  देबै ।।


ई  की  भेलै ! गछपक्कू  तँऽ,
अपनहि तूबल आओर खसल ।
हमर मोन भगवानहु बुझलन्हि,
हापुस आम ओ बिहुँसि रहल ।।


सुपुक = सुपक = सुपक्व

गोपी = सुपक्व निदग्ग पीयर वा लाल-पीयर गछपक्कू आम

हापुस = रत - रत करैत सुपक्व गछपक्कू आम (मराठी आदि भाषामे "हापुस" आमक एक गोट प्रकारक नाम थिक, मुदा मैथिलीमे ताहि अर्थमे नञि प्रयुक्त भऽ कऽ निर्दिष्ट अर्थमे प्रयोग होइछ)

आमक बिहुँसब = गछपक्कू आम जखन बेसी ऊँचाईसँ तूबि कऽ माटि पर खसैछ तँऽ ओ एक वा एकाधिक स्थान पर (प्रायः ऊपरमे या बगलमे/पार्श्वमे) फाटि जाइछ । एहि घटनाकेँ आमक बिहुँसब ओ एहेन आमकेँ बिहुँसल आम कहल जाइत अछि ।




  
०६

पाँचहु आङ्गुर  नञि छी समान,
नहिञे   दू   गोटे   संसारमे ।
भाँति - भाँति  केर  लोक भेटैए,
अप्पन    सभक   समाजमे ।।

एक्कहि  आमक   झब्बामे  छै,
काँच,  डम्हाएल  आ  पाकल ।
तहिना  समाजमे  लोक  थिकै,
अपना - अपनी काजेँ  पागल ।।

किछु प्रबुद्ध, किछु अतिप्रबुद्ध,
सामान्य तथा किछु  निर्बुद्धी ।
सुजन - सुबुद्धि सेहो  बहुतहि,
किछु  रहैछ अनेरहु  दुर्बुद्धी ।।

ओहुना ई सभ किछु बदलैत छै,
समय - वयस - अनुभव संगे ।
सबहक अप्पन अलगहि महत्त्व,
आ काज आबैछ  अपना ढंगे ।।

पाकत जञो सभटा  आम संग,
एक्कहि बेर भऽ  जायत ढेरी ।
तेँ तकर व्यवस्था प्रकृति करैछ,
पकबैछ ओ आम  बेरा - बेरी ।।

मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍204म अंक (‍15 जून 2016) (वर्ष 9, मास 102, अंक ‍204) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।