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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday 31 January 2017

पद्य - ‍२‍२‍‍५ - कालचक्र (कविता)

कालचक्र (कविता)








            हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना) B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd & 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही । ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती” नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग) छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना मैथिली भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।





पन्ना  पर  पन्ना  उनटि रहल,
हर पृष्ठ  नवल नित्-नूतन छी ।
जे बीति चुकल  से छल अद्भुत,
आबएबाला  सेहो  अनुपम छी ।।

ई समय-सरित्  अविरल बहइछ,
अप्पन प्रवाह - गति ओ लयमे ।
हम मूक  ठाढ़ भऽ  देखि  रहल,
हर एक  दृश्य  अतिविश्मयमे ।।

प्राचीर   कतेकहु   ध्वस्त  भेल,
कतबा  तटबन्ह  भेल कवलित ।
फेर  ओकरहि  सलिल-सुधा-रससँ,
कतबा कोंढ़ी* भेलछि विकसित ।।

एकरहि  प्रभाओसँ   फेर  अगिन,
पाथर  मोती बनि  निखरि गेल ।
अगनित  हीरा  पुनि  भेल मलिन,
आ  सीसा - टुकड़ी  बदलि गेल ।।

जे  श्वेत  प्रतीत  होइत  छल से,
देखल तँऽ कारी - गुजगुज  छल ।
पाषाण-प्रतिम   छल   जे  लगैत,
खन मोम जेकाँ देखल पघिलल ।।

के  भेल  एतए  जे   कालचक्रसँ,
बाँचि  सकल  कहुखन  कहियो ?
सुरपुर - जञो इन्द्र ने बचा सकथि,
की  मानव केर हस्ती - कहियौ ??

* एहि कवितामे “कोंढ़ी” शब्दक प्रयोग “पुष्प-कलिका” अथवा अविकसित फूल वा फूल केर फुलएबासँ पुर्वक अवस्थाक अर्थमे भेल भछि ।


विमर्शः-

कोंढ़ - ई शब्द मैथिलीमे “अनेकार्थक शब्द” जेकाँ प्रयुक्त होइत अछि । एकर एकटा अर्थ “कुष्ठ वा महाकुष्ठ” (अंग्रेजीक लेप्रसी वा LEPROSY) नामक बेमारीक सन्दर्भमे होइत अछि । दोसर प्रयोग “डाँढ़” (हिन्दीक “कमर” आ अंग्रेजीक “वेस्ट वा WAIST) केर सन्दर्भमे होइत अछि (यथा - कोंढ़ तोड़ि देलक …………. इत्यादि) । कल्याणी कोशकार कोंढ़गर माने कलेजगर बतओलन्हि अछि । मुदा मैथिलीमे कोंढ़-करेज दूनू संगहि-संग सेहो प्रयुक्त होइत अछि (यथा - ओकरा कोंढ़-करेज काटि कऽ दऽ दितियै की ? …………… आदि) जाहिसँ ई ध्वनित होइत अछि कि विशिष्ट अर्थमे कोंढ़करेज दूनू अलग-अलग अर्थ रखैत अछि ।

कोंढ़ी - ईहो शब्द मैथिलीमे “अनेकार्थक शब्द” जेकाँ प्रयुक्त होइत अछि । एकर पहिल अर्थ पुष्प कलिकाक  (हिन्दीक “कली” आ अंग्रेजीक “फ्लोरल बड् वा FLORAL BUD”) केर अर्थमे होइत अछि । दोसर प्रयोग “कुष्ठ-रोगी” केर अर्थमे होइत अछि ।

कोढ़ि - एकर उच्चारण मैथिलीमे “कोइढ़” होइत अछि जकर मतलब अछि “आलसी” । यथा - कोढ़िआ बड़द, कोढ़िआ मचान आदि ।

कोढ़ - ई शब्द सेहो दू अर्थमे प्रयुक्त अछि । पहिल कोढ़ रोगसँ ग्रसित व्यक्ति आ दोसर एहेन ताड़क गाछ जाहिसँ ताड़ी नञि गरैत हो ।

कोंढ़ी आ कोढ़ी - किछु लेखक लोकनिक मानब छन्हि जे “कोंढ़ी” शब्द “पुष्प-कलिका” केर परिचायक थिक जखनि कि “कोढ़ी” शब्द “रोग विशेष”केँ निरूपित करैछ । एहि बातक पुष्टि किछु सीमा धरि “कोढ़ि या कोइढ़” शब्दसँ होइत अछि जकर निष्पत्ति सम्भवतः “कोढ़ वा कोढ़ी” शब्दसँ भेल अछि । आयुर्वेदमे कुष्ठरोगक (कोढ़क) प्रमुख कारण आलस्य आ आलस्यकारी भोजन (मधुर ओ स्निग्ध) बताओल गेल अछि आ मैथिलीमे  “कोढ़ि या कोइढ़” शब्दक अर्थ सेहो “आलसी” अछि । कोढ़ि शब्दक उत्पत्तिक एहि आधारकेँ मानलासँ कोढ़ शब्द कुठक परिचायक बूझि पड़ैछ आ कोढ़ी शब्द कुष्ठ रोगीक परिचायक जखनि कि कोंढ़ी शब्द पुष्प कलिकाक रूपमे प्रयुक्त बूझल जाएत ।

परञ्च सामान्य रूपेण देखबामे अबैत अछि कि जे केओ जीवन भरि गामहिमे रहलाह (वा रहलीह) आ हिन्दी नञि केर बराबर जनैत छथि ओ आनुनासिकक प्रयोग करैत पुष्प-कलिका ओ रोग-विशेष दुहुक लेल “कोंढ़ी” शब्दक प्रयोग करैत छथि । जखनि कि, विशेषतः शहरमे रहनिहार (वा रहनिहारि) लोक जे हिन्दी नीक जेकाँ जनैत अछि से आनुनासिकक प्रयोग नञि करैछ आ उपरोक्त दुहु अर्थमे “कोढ़ी” शब्दक प्रयोग करैछ ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍218म अंक (‍15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक ‍218) केर पद्य स्तम्भमे प्रकाशित ।




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